जब मैं रोड से गुजर रहा था अचानक एक परछाईं मेरे सामने से गुजरी मुझे लगा कोई व्यक्ति होगा जिसकी परछाई होगी लेकिन नहीं दूर दूर तक तो कोइ आदमी नजर नहीं आ रहा था वो सुनसान सा रास्ता और मै अकेला डर सा गया था लेकिन फिर भी हिम्मत कर के चले जा रहा था चलते चलते मुझे दूर से एक झोपड़ी दिखाई दी शाम होने को थी घर अभी काफी दूर था वही एक दिन का सफ़र और बाकी था |
मै क्या करता इस वीरान जगह पर बस चलते चलते उस झोपड़ी के पास पहुंचा बाहर से आवाज़ लगाई कोई है! कोई है! झोपड़ी से एक लड़की निकल के आई एक दम परी लग रही थी रेशमी बाल तीखी नयन मनमोहक चेहरा लेकिन वही फटी पुरानी कपड़ा पहनी हुई थी अब इस वीरान जगह में भी रूप की मल्लिका रहती होगी मै ने कभी सोचा नहीं था।
मै तो एक टक देखते ही रह गया फिर अचानक से मेरे कान में एक हलचल हुई वो लड़की कुछ कह रही थी मै हरबरा कर जोर से जी बोला लेकिन फिर वो लड़की अपनी बात दोहराई क्या चाहिए .. न न नहीं कुछ नहीं राह भटक गया हूँ बस मुझे यही एक झोपड़ा दिखा इस वीरान में सो चला आया अब शाम भी हो चला है इस वीरान में कहाँ जाऊंगा ठंड भी बहुत है बस रात भर मुंह छुपाने की कोइ जगह मिल जाता तो .. आ जाये अंदर ।
अब मै झोपड़े के अंदर था अंदर एक ढिबरी जल रही थी लड़की ने मेरे सामने पानी से भरा लोटा ला के रखी.. हाथ मुंह धो लिजिए तब तक मै कुछ खाना बना दूँ आप भूखे होंगे जी…!
लड़की मछली को काटने में लगी हुई थी मै भी उसके पास जा के बैठ गया जी आप का नाम क्या है ? क्यों ?! नहीं वैसे ही पूछ रहा था ! जी मेरा नाम नैना है | बहुत अच्छा नाम है ! लेकिन मुझे अभी तक समझ में नहीं आ रहा था की इस वीरान में ये लड़की अकेली कैसे रहती होगी मै इसी उधेरबुन में लगा हुआ था की लड़की बोली वहां खाट लगा है ठंड बहुत हो रही है आप वहां जा के बैठ जाईये बापू भी आतें ही होंगे..
अच्छा आप अपने बापू के साथ रहती है.. जी मै बापू के साथ रहता हूँ आप को क्या लगा… नहीं नहीं आप को अकेला देखा तो मुझे लगा … क्या लगा अकेली लड़की इस वीरान में जो मन में आये वो करेंगे नहीं नहीं ये क्या आप बोल रही है मै तो बस इस उधेर बून में था की आप कैसे इस वीरान में अकेली रहती होगी फिर आप ने बोला बापू आते होंगे तो मेरा उधेर बून ख़तम हुआ आप जैसा सोंच रही है वैसा मै नहीं हूँ मै तो बस अपनी दुनिया में ही खोया रहता हूँ लेकिन हाँ मै ने सपनों में भी नहीं सोचा था की आप जैसी सुंदरी भी इस वीरान में रहती होगी
बाहर से एक आवाज आई नैना ओ बेटी नैना शायद नैना के बापू आ गए थे नैना झट से उसी लोटा में पानी ले के बाहर के तरफ दौड़ी बापू ये लिजिए हाँथ मुंह धोईए..
बापू एक मुसाफिर आया हुआ है इस वीरान में भटक रहा था और रात भर मुंह छुपाने केलिए कह रहा था तो मै अंदर ले आया अच्छा किया बेटी खाना वाना दिया नहीं बापू अभी बना ही रहे थे ठीक है तुम खाना तैयार करो मै तब तक उस से मिलता हूँ ठीक है बापू
नमस्ते बाबा ! जी नमस्ते नमस्ते ! इधर कैसे आ गए इस वीरान में बाबा मै तो बस काफी समय बाद शहर से अपने गांव जा रहा था और रास्ता भटक गया और इस वीरान में आप का ही झोपड़ा सहारा बना ! आप लोगों का बहुत बहुत धन्वाद ! अरे नहीं बाबूजी अतिथि का सत्कार तो हमारा धर्म है इसमे धन्यवाद किस बात का | और नैना के बापू ने नैना को आवाज़ लगाया बेटी खाना बन गया तो बाबूजी को खिला दो | जी बापू हो गया अभी लाया !
नैना खाना ले के आ गयी थी मै तो बस उसी को देख रहा था पता नहीं क्यों मुझे उस को देख के एक सुख की अनुभूति होती थी तभी नैना जी आप का खाना हाँ हाँ लाईये मै ने उसके हाँथ से खाना ले लिया..
मै खाना खाने से ज्यादा बस नैना को ही देख रहा था वो भी शायद समझ गयी थी लेकिन क्या ….. तभी बापू आ टपका बेटा आकाश में घना बादल छाया हुआ है मुझे निकलना होगा भेड़ को बाहर भी तो नहीं छोड़ सकते आखिर उसी से तो घर चलता है लेकिन बापू मै अकेला….!!!!
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