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कहानी : नकाबपोश

बाहर बारिश बहुत तेज हो रही थी सभी अपने अपने घरों में दुबके हुए थे ऐसा लग ही नहीं रहा था की इस बारिश  से कोई खुश हो शाम के वही 5-6 बजे होंगे पुरी सड़कें सन्नाटों से घिरा हुआ जैसे लग रहा था ये बारिश सुकून की नहीं बल्कि भय की बरसात हो तभी अचानक से बिजली कौंधी धराम कड़ कड़ कड़ाक और मुझे मेरे घर की खिड़की से उस कड़कती हुई बिजली की रोशनी में एक नकाबपोश दिखाई दिया जो लम्बी लम्बी डेग भरते हुए चले जा रहा था |

सावर्ण अरे सावर्ण आया पापा (तभी मेरे पापा की आवाज सुनाई दी वो मुझे बुला रहे थे) जी पापा कहिये !

बेटा बाहर बारिश बहुत तेज हो रही है क्या? जी पापा !

बारिश अगर कम हो जाए तो प्रताप अंकल के यहाँ से मेरी दवा ला देना टहलने गया था शाम को तो उनके यहाँ ही गिर गया था | ठीक है पापा थोड़े देर में वैसे बारिश कम हो ही जायेगा तो मैं प्रताप अंकल के घर चला जाऊंगा ठीक है बेटा खो खों खासतें हुए पापा बोले

मेरे पापा यानि जगवीर सिंह सेना में कर्नल थे पता नहीं नियति का खेल किसको पता होता है दम्मा से पीड़ित हो गए और गमा बैठे अपनी नौकरी | पेंसन से जो कुछ आता उसी से चलता था पुरा परिवार लेकिन पापा में अभी भी वही कड़क मिजाज भारी भरकम आवाज एक बार जोर से बोले तो बिजली भी थर्रा जाए

वैसे तो मै प्रताप अंकल के यहाँ निकल गया था लेकिन मेरे दिमाग में अभी तक वही नकाबपोश उथल पुथल मचा रखा था मुझे समझ में नहीं आ रहा था की सुनसान सड़क पर तेजी से नकाबपोश वो भी सैनिक कॉलोनी में कहाँ जा सकता है

मै उसी नकाबपोश के धुन में प्रताप अंकल के घर पहुंचा अंकल किसी अधेड़ उम्र के एक काला सा आदमी से बात कर रहे थे वो लोग इंग्लिश में कुछ फुसफुसा रहें थे मै ने प्रताप अंकल को आवाज लगाया अंकल हरबड़ा गए और फिर हँसकर बोले बोलो बेटा भाईसाब ठीक तो हैं ना हाँ अंकल सब ठीक है बस वो पापा की दवा छूट गई थी उसी को लेने आया था |

हाँ बेटा मैं ने सिया को वो दवा दे दिया था की बारिश छुटतें ही अंकल को दे आना उसी के पास होगा जा के ले लो शायद अपने कमरे में होगी जी अंकल अभी जाता हूँ ठीक है बेटा बाहर बारिश लग रहा है तेज होने वाली है दवा ले के जल्दी घर चले जाना | ठीक है अंकल !

(सिया अपने रूम में ही थी वो यूट्यूब पे कोई विडियो देख रही थी) पहुँचते ही वो झट से बोली मुझे पता है तुम किस लिए आए होगे तभी अचानक से लाइट चली गई और धाड़- धाड़ दो फईरिंग हुई और जोड़ से एक चीख निकली और तुरंत सड़क पर दौड़ने की भी आवाज सुनाई दी सिया मेरे सिने से चिपक गई थी डर के मारे और अपने बाँहों में भर कर जोर से दबाने लगी पता नहीं उसको क्या हो गया था मै तो दोनों ओर से परेशान हो उठा था |

एक झटके में मैंने सिया को अपने से अलग किया और तुरंत दरवाजे की ओर दौड़ लगा दी ये सब इतनी जल्दी घट गयी थी की मुझे कुछ पता नहीं चल पा रहा था की ये क्या हो गया और मैं क्या करने वाला हूँ तभी……..??? क्रमशः

“कौन था वो नकाबपोश ? क्या नकाबपोश ने ही वो मर्डर किया था ? सिया कौन थी सावर्ण के साथ उल्टी हरकतें क्यों करने लगी थी ? या कहीं सिया की ही तो चाल नहीं ! इन सभी प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए पढ़िए इसकी  अगली कड़ी में और हाँ कहानी अगर अच्छी लगी हो तो कमेंट बॉक्स में कमेंट करना ना भूले’’

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