ज़िन्दगी का खेल निराला हैदुख सुख का पिटारा हैएक बात समझ में आ गईपैसों का ही बोलबाला है यहांखुशी भी पैसों से खरीदी जाती हैओर गम भी पैसों की कमी से आता हैलड़ लेते हैं लोग अपनो से तबकोई रिश्ता समझ नहीं आता हैना जाने कितनो की ज़िन्दगीयो सेखेलेगा ये कागज का टुकड़ा
in Poem
कविता: ज़िन्दगी का खेल

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