1. पहला लक्षण: आप हमेशा विचारों में खोये रहतें हैं
सुस्ती या तो भोजन के अधिक सेवन से या विचारो के अधिक मात्रा में सेवन करने से आती हैं शायद आप ये सोचे की विचारों के अधिक सेवन से आलस्य कैसे आयेंगा हालांकि हर कोई ये तो समझ सकता हैं की भोजन के अधिक सेवन से जरुर सुस्ती आती हैं अगर विचार आपको खा रहे हैं तो आप देखेंगे की आप बिस्तर से बाहर ही नहीं आना चाहेंगे.
यहाँ पर विचार प्रक्रिया की बात नही की जा रही हैं बल्कि विचारो के ज़यादा सेवन की बात की जा रही हैं जिसका मतलब हैं विचार लागातर बह रहे हैं बिना आपके प्रयास के, बिना आपके ध्यान के, बिना आपके ईरादे के, जब ऐसा हो जाता हैं.
तब आप देखेंगे की स्वभाविक रूप से आप भौतिक गतिविधियों से बचना चाहेंगे और जब ये एक सीमा से परेय चला जाता हैं तब आपके विचार आप पर पूरी तरह से कब्ज़ा कर लेते हैं चिकित्सा विज्ञान में इस स्थिति को भद्दे नाम दिये जाते हैं.
ये महत्वपूर्ण हैं कि भोजन और अंतरहिन विचारो की गति में एक तरह का संयम होना चाहिये चेतना से सोचना या बस विचारो के सहारे जीवन जीना ये दो बहुत अलग चीजे हैं ये एक दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई हैं कि बहुत सारे लोगों को ये फर्क पता नहीं हैं और इस वजह से जो कीमत मानवता चुका रही हैं वो उचित नहीं हैं
2. दूसरा लक्षण: मजबूत निष्कर्षो ने आपको आपके मन में कैद कर रखा हैं
जो निष्कर्ष आप अपने मन में निकालते हैं वें जीवन को अनुभव करने की आपकी क्षमता को गंभीर रूप से कम करते हैं जितने ठोस आपके निष्कर्ष होंगे उतना ही ज्यादा आप उनके आधार पर आप अपनी पहचान बनायेंगे और उतनी ही ज्यादा आपको अपनी मानसिक सच्चाई लगने लगेगी.
लगभग 10 प्रतिशत ईन्सानी दुख यही हैं आप अपने मानसिक नाटक को सच्चाई समझने की भूल कर बैंठते हैं ये आपका नाटक हैं आप इसके साथ जैसे चाहे खेल सकते हैं अगर आप इस नाटक के अच्छे निर्देशक हैं तो आप जैसा चाहे इसे बना लेंगे नहीं तो ये तीव्र से होतें रहेंगे यही अस्तित्व की सच्चाई हैं.
दुनिया कितनी सुन्दर हैं और ज्यादातर लोग अपने मन में जीना चुनते हैं क्युकी उन्होंने ठोस निष्कर्ष बना लिया हैं और अब उनके लिए ये विकल्प ही नहीं रहा कि उन्हें कहाँ जीना हैं अब समय हैं की आप इस धरती पर जिये इस सृष्टि की सुन्दरता और इस सृष्टि में सृष्टिता की उपस्थिति की भी अनुभूति कीजिये सृष्टि के हर पहलु पर बस प्रर्याप्त ध्यान दीजिये और आप सृष्टि के श्रोत की उपस्थिति को उसमे देखेंगे.
आपको ये अनुभव करने की जरुरत हैं मानसिक नाटक आपका बनाया हुआ हैं जो अस्तित्व का नाटक यहाँ हो रहा हैं उसकी तुलना में मानसिक नाटक बहुत छोटा हैं अब समय हैं कि आप इसका आनंद लें ये हमारी इच्छा हैं कि आप अपने ही मन की कैद से बाहर निकले और सृष्टि की सुन्दरता को जाने बुनयादी चीज सबसे मौलिक पहलु हैं जिसका आपको ध्यान रखने की जरुरत हैं वो ये हैं कि आप निष्कर्ष मत बनाइये अगर आप निष्कर्ष नहीं बनाते तो आपके मन के दरवाजे बंद नहीं होंगे
3. तीसरा लक्षण: आप अपने जीवन के हर पहलु में अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करते हैं
अगर आप केबल अपना तर्क लगाते हैं और अपनी समझ के दुसरे पहलुओ को नजरअंदाज करते हैं तो आप जीवन की हर छोटी चीज को लेकर भ्रमित रहेंगे क्युकि तर्क एक काटने वाला उपकरण हैं ये एक चाकू की तरह हैं अगर आप काटना चाहते हैं तो ये एक अच्छा साधन हैं पर अगर आप चाकू से सिलाई करते हैं तो आपके पास चिथरे बचेंगे ज्यादातर मनुष्य इस समय यही अनुभव कर रहे हैं कि वे सिलने के लिए, चीजो को जोड़ने के लिए एक काटने वाले साधन का इस्तेमाल कर रहे हैं.
आप जितना प्रयास करेंगे आपके अन्दर आपके उतने ही चिथरे होंगे ऐसा समय जब लोगो ने दुनिया को बाँटा था फिर वे और ज़यादा बाँटते चले गये आपने ये देखा होगा ऐसा समय था जब लोग साथ में रहते थे हमारे देश (भारत) में ऐसे परिवार थे जहाँ एक परिवार में 500-600 लोग होते थे वे एक ही घर में रहते थे फिर धीरे धीरे घर में बस माता-पिता और उनके बच्चे और पोता-पोती रहने लगे फिर दादा-दादी समस्या बने तो वे कही और भेज दिये गये, बच्चे समस्या बन रहे हैं तो अब उन्हें कही और भेज रहे हैं और धीरे-धीरे पति-पत्नी अलग अलग घरो में रह रहे हैं.
बस यही नहीं अपने भीतर में आपने अपने आपको कई हिस्सों में काटकर खुद को कई लोगो में बाँट दिया हैं क्युकी तर्क काटने कि प्रक्रीया हैं अगर आप जीवन के हर आयाम के लिए केवल आप तर्क का ही इस्तेमाल करते हैं तो आपका यही हाल होगा एक दिन आपकी मानसिकता खंडित हो जायेंगी हाँ तो ये महत्वपूर्ण हैं कि मन के दुसरे आयाम आपके भीतर जीवित हो बुद्धि के उन आयामों के जीवित हुए बिना आपका दिल नहीं धड़केगा, आपका लीवर काम नहीं करेंगा, आपकी किडनी काम नहीं करेगी ये सबकुछ नहीं होगा ये सब आपके तर्क से नहीं हो रहा तो आपके भीतर समझ के ऐसे आयाम हैं जिनकी खोज की जानी चाहिए और आगे चेतना में जीवित होना चाहिए
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